कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥ चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।। त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा । तन नहीं ताके रहे कलेशा ॥ तदा एव काश्चन परीक्षाः समाप्ताः भवन्ति। देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥ त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । https://finnkhkqm.eedblog.com/29834831/shiv-chalisa-lyrics-in-gujarati-pdf-an-overview